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प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति मे संतपुरुप व सतियों के जीवनचरित का बड़ा भारी महत्व है । महान् व्यक्तियों के उदार चरित युगयुग तक जनता के जीवन-पथ मे दीपस्तंभ का काम करते है। कथानायक चाहे पौराणिक हो या ऐतिहासिक उनकी जीवन सौरभ समान रूप से जनमानस को अनुप्राणित करती रहती है। सती पद्मिनी और गोरा बादल का चरित सतीत्त्व और स्वामीधर्म का प्रतीक होने से मेवाड के कण कण में व्याप्त हो गया और विभिन्न कवियों ने उस पर काव्य बना कर श्रद्धाञ्जली अर्पण की। सं० १६४५ मे कवि हेमरत्न ने, स० १६८० मे नाहर जटमल ने, फिर सं० १७०७ मे लब्धोदय ने, उसके बाद कवि दलपतविजय ने 'खुमाण रासो' में सती पद्मिनी की गौरवगाथा गायी है। इनमे हेमरत्न की कृति को छोडकर अवशिष्ट तीनों कृतियाँ इस ग्रंथ मे प्रकाशित की जा रही है। इन तीनों से पूर्ववर्ती रचना 'गोरा बादल कवित्त' है, जो प्राचीन व महत्त्वपूर्ण होने से इस प्रथ के पृ० १०६ मे प्रकाशित किया गया है। सभी कवियों ने अपने काव्यो मे इस अज्ञात कर्तृक कृति के कवित्तों को उद्धृत कर प्रामाणिक माना है। किस कवि की कृति मे कहाँ कौनसा पद्य अवतरित है यह नीचे की पंक्तियों. मे वताया जाता है।