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पद्मिनी चरित्र चौपई]
[२१ उआ की ओपम ने द्यु रे लाल,
अउर ऐसी कोई नाहिं रे सो० ॥१२॥च०॥ अदभुत जाणे अपछरा रे लाल,
अति सुन्दर सुकमाल रे सो०। पतली कणयर कंबसी रे लाल,
पदमणि रूप रसाल रे सो० ॥१३॥चा' दील्लीसर कहै भाट स्यु रे लाल,
अंसी पदमणि नारि रे सो० ॥ तें कहा ही देखी सुणी रे लाल,
कहि तु साच विचारि रे सो० ॥१४||चा' भाट कहै तुम महेंल में रे लाल,
नारी एक हजार रे सो० ॥ तामै पदमणि सही होसी रे लाल,
दोय चारि निरधार रे सो० ॥१३॥ च०॥' -दूजी ठाम न साभली रे लाल,
कैसी कहिइ झूठ रे सो०।। इम निसुणी खोजो कहै रे लाल,
आसंग मन धरि दूठ रे सो० ॥१६॥च०॥ वात फरोसतई क्या कहै रे लाल,
वांभण साहि हजूर रे। सो०॥ कहाँ वे सुरनर मोहनी रे लाल,
पदमणि पुण्य पडूर रे सो० ॥१८।। च० ॥