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पद्मिनी चरित्र चौपई]
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वीरभाण वलतउ कहइ, बोल्यंई घणे पराण । वादल वात भली कहउ, पिण समझा नहीं तिलमान ॥५॥ बादल वात भली कहो, अनेन समझा मोड। रखे राणी राजा लीयो, तो पति राखो चितोड़ ॥६॥ ढाल १४ म्हारी सुगण सनेही अतमा, ए देशी आलिमपति अलावदी, ईश्वर नो अवतार रे भाई । मुगल महाभड़ जेहने, लाख सतावीस लार रे भाई ।।१।।आ०॥ एक हुकम करता थका, उठे एक हजार रे भाई । सगले थोके सावतो, पहुंचीजे किम पार रे भाई ॥२॥आ०॥ कलै कलै पदमणी राखसु, राय छंडी हजूर रे भाइ। पतिसाह प्रति लोपी ने, धूक अंध नित घूर रे भाई ॥३॥आ०॥ कहि बादल सुण कु वरजी, स्यउ आपा ए सोच रे भाई। काइ आलोचइ केहरी, मारता मदमोच रे भाई ॥४॥आ०|| इम करता जो को मरइ, तउ जगि कीरति होई रे भाई। कन्या साटइ पामता, सु हगी कीरित सोई रे भारे॥शाआ०॥ कुमर कहै इण बात री, कीज्य ढील न काई रे भाई। सोई अरजून जाणीइ', जे वेघो वाले गाय रे भाई ॥६॥आ०॥ रहै पदमणी आपणै, नई वलि छूटईराण रे भाई । इण बातइ कुण नहिं हुवइ, सुप्रसन मनहि सुजाण रे भाई ॥१॥ वादल कहै सहू भलो, हुइ आवीसीइ तुम नाम रे भाइ । करज्यो वासइ कुमर जी, सबलो ऊपर सामि रे भाई ||आ०॥
१ समझिइ, जि कोइ २ बोलइ