Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 274
________________ १६४] [गोरा वादल चौपई लग्गाम सोवन मुक्ख सोहै, जेर बंध सु पाट । अब रेसमी कसि तंग ताणे, लटकणा के थाट ।। ६०॥ गजगाह घूघरमाल घमकै, तवल बाज वणाव । कलंगी भली जरकसी पाखर, भलो परचौ भाव ॥ ६१ ।। हलके पचावन साथ हाथी, ढलक नेना ढाल | अति घटा सावण मास जैसी, मर मद परनाल ।। ६२ ।। वग-क्राति कांति सपेद सुंदर, गाजते गजराज । पहिराय पाखर साह राखे, फोज आगे साज ॥ ६३ ।। रथ अर पयादे अवर असवार, गनि सके कह कोण । उमडी चली आतस्सवानी, खलभले त्रय भौण ।। ६४ ॥ डेरा पड़े दस कोस ताँई, करै नाहि मुकाम । आइक गढ़ चीतोड़ उतरे, दिया डेरा ताम || ६५॥ ताणे तहाँ पचरंग तंबू, फरहरे नीसाँण । फले पलास वसंत आगम, वद कविजन वाँण ।। ६६ ।। दूहा गढ-रोहो करकै रह्यो, अलावदीन सुलतान । रतनसेन माँन नहीं, चले गढनस प्रॉन ।। ६७ ।। अंव लगाये ठोर तिह, फल पाके तव जान । वारा वरस वैठो रहौ, अलावदीन सुलतान ।। ६८ ॥ कवित्त कहै ताम सुलतान, कही राघव क्या कीजै ?, गढ़ चितोड है विषम, जोर तें कबहु न लीजै। वा

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