Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 277
________________ [१६७ गोरा बादल चौपई ] चल्यो ताँम सुलतान, प्रोल दूजी जव आयौ, और दिये दस गड्ड, राय अति बहुत लोभायो। इम लेवे वगसीस, तवह कपट कर फंदियो, राजा रतनसेन अति लोभकर, अहि सुलतान मुबंधीयो ।।७।। सोरटा रहे प्रोल जड़ लोक, सोर सकल गढ मे भयो । राजा ले गयो रोक, कपट कियो सुलतान तव || कवित्त सदा मरावै साह, राय कोरड़े लगावै, कहै, देह पदमनी, जीव तब ही सुख पावें । गढ के नीचे आँण, सहम भूपति दिखलावे, लै राखै लटकाय, लोक सवही दुःख पावै । मारतें राय कायर भयो, पदमावत देऊँ सही, भेजी खवास मारौ न मुझ ले आवै जब लग ग्रही ।।८।। सोरठा भेयो राय खवास, कहै, देय पदमावती। मुक जीवन की आस, विलम न कीजै एक खिन १८१॥ कंडलियो कह रॉनी पदमावती, रतनसेन राजाँन, नारि न दीने आपणी, तजिये, पीव, पिरान ।

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