Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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गोरा बादल चौपई]
[२०१
सीह, सिं चाणो, सापुरुप, ए लहुरे न कहाय । वड़े जिनावर मारि कै. छिन में लेय उठाय ॥१८॥ सिंह जोन तें निकसतै, गय-धड़ दीठी जाँम । तुट्टवि गन मसतक लड्यौ, आइ रह्यो महि ताँम ।।१६||
कवित्त बादल कह, सुण माय, सत्त तुझ साहस मेरा, लडू साह के साथ, कर संग्राम घणेरा। मारु सुभट अपार, स्याम के बंधन काहूँ, जो सिर गयो त जाहु, सीस दे जग जस खाटू। जिम राम-काज हनुमत कियो, मायौ रावण एक खिण, रोवर गुडाय तोडौं तवर, साह चलाऊँ खग्ग हण ॥१००।। बालक तो परवाँण, जाँम गंवर-घड मोडूं, बालक तो परवाँण, पकड पिलवॉन पछोडू। वालक तो परवाँण, स्याम के बंधन कट्ट, वालक तो परवाँण, साग असवार पलटहूँ। मारूं तो खग साह-सिर, गयवर दलू , सत्य चढूँ, जननी लजाऊँ तुझ कू, जे वाग मोड़ पाछो मुहूँ ॥१०१॥
दूहा जैसा, बादल, तँ किया, तैसा करै न कोय । माता जाइ आसीस दै, अब तेरी में होय ॥१०२।। माता जबही फिर चली, बहुवर दिवी पठाय । मेरो राख्यो ना रह्यो, अब तुम राखो जाय ॥१०३।।

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