Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 288
________________ २०८] [गोरा बादल चौपई देवगना तें छूटि, सोइ सिर गगा पडियो, गगा ते लियो संभु, रुंडमाला में जड़ियो। सो सोह गोरल भरतार इम, सापवित्र मस्तक भयो। यो जूझ परकाज-पर, सो गोरो सिवपुर गयो ॥ १४६ ॥ दूहा नारी इम वाणी सुणी, पिय की पघड़ी साथ । सती भई आणंद स्, सिवपुर दीनो हाथ ॥ १४७॥ गोरा बादल की कथा, पूरण भइ है जाँम । गुरू-सरस्वती-प्रसाद करि, कविजन करि मन ठाँम ॥ १४८॥ सोलैस असिय समै, फागण पूनिम मास । वीरा रस सिणगार रस, कहि जटमल सुप्रकास ॥ १४६ ॥ छंद रिसावला वसै मोछ अडोल अविचल, सुखी रइयत लोक, आणंद घरि-घरि होत ऊछब, देखियत नहिं सोक ॥ १५० ॥ राजा जिहाँ अलिखाँन न्याजी, खान-नासिर-नंद, सिरदार सकल पठान विच है, ज्यों नखने चद ॥ १५१ ॥ धर्मसी को नद, नाहर जात, जटमल नाँउ, जिण कही कथा बनाय के, विच संवला के गॉउ ॥ १५२ ॥ कहताँ तहाँ आनन्द उपजै, सुन्यॉ सब सुख होय, जटमल पयंपे, गुनि जनो, विघन न लागे कोय ।। १५३ ॥

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