Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner
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१६६]
[गोरा बादल चौपई राघव कहै, सुण पातसाह, यह पदमनी न होय । कहा देख के तुम गिडे, अति सुंदर है सोय ॥४॥
कवित्त लाख लहै ढोलियो, सवा लख लेह तुलाई, अर्ध लाख गीदुवौ, लाख त्रय अग लगाई। केसर अगर कपूर, सेझ परमल पर भीनी, ता ऊपर पदमनी, रामरस-रूप-नवीनी। अल्लावदीन सुलतान सुण, पदम गंध है पदमनी, चन्द्रमा वदन, चमकंत मुख, रतनसेन-मनभावनी ||७||
दूहा बोल्यो तब, अल्लावदी, पकड़ राय को हाथ । दिखलावत हो और त्रिय, कपट कियो मुझ साथ ॥७६||
कवित्त
कदै ताम सुलतान, कहो पदमन-प्रति ऐसो, मुख दीखावो वेग, कपट माड्यो है केसो। मुख काट्यौ पदमनी, ताम बारीक वाहिर, निरख गिर्यो सुलतान, थम लीयौ तसु थाहर । खिन एक संभाले आपकू , साह कहै, डेरै चलो,
क्या सिफत करू मैं राव की, रतनसेन भाई भलो ||७७| फिर्यो ताम सुलतान, प्रोल पहिली जव आयौ, रतनसेन भयो साथ, लाख वकसीस दिवायो।

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