Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 266
________________ १८६ । [गोरा बादल चौपई तब सुनि आई पदमावती, गुरू चरण ले सिर धरे, आसीस देह रावल कहै, पुत्री तुम कारज सरै ॥१६॥ कहे ताँम राजान, पदम पुत्री सुखदायक, वर प्रापत अव भई, नहीं कोई वर लायक । हूं ल्यायो वर, राय, तोहि पुत्री के कारण, गढ़-चितोड़-राजान, दुष्ट-दुरजन-विडारण। राजा रतनसेन चहुवाण है, तिस समवड़ नहि अवर नर, परणाय देह पदमावती, मान वचन तू सत्तकर ॥२०॥ गुरु-वचन राजान, माँन पुत्री परणाई, रतनसेन के साथ, भई है भली सगाई। दीन्हो बहु दायनो, लाल मुकताफल, हीरे, पाटंबर, पटकूल, थाल भर कंचन नीरे। रावल कहै राजान को, पदमावति मुकलाइये, चीतोड़-लोक चिंता करें, राजा रतन चलाइये ।।२१।। राघव दीयो संग, वेग पदमनी चलाई, रोवत माता भ्रात, कुवरि को कंठ लगाई। उड़न-खटोला चढं राय, पदमावति, जोगी, राघव चेतन संग, उडवि आये गढ भोगी। नीसाण वजे पंच-सवद तहाँ, गोरी मंगल गाइयो, राना रतनसेन पदमावती, ले चितोड़गढ़ आवियो ।।२२।। तजी रानि सब और, राव पदमावति रातो, रैन-दिवस रह पास, अंग आणंद मदमातो।

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