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गोरा वादल चौपई]
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कवित्त दियो भेख जोगेंद्र, कान मुद्रा पहिराई, कंथा सिंगी गले, अंग बभूत चढाई । कपट जटा, करदंड, मोरपंख विझ्झण झोलै, वज्र कछोटो पहिर, अलख अगचर मुख बोले, कर-पंकज पात्र अनूप ले, राज द्वार जव आवियो, नृप सुता निरख पदमावती, तव सु राज मुरझाइयो ।॥ १६ ॥
दूहा मन मोह्यो पदमावती, देख रूप अति राइ, कहै सखी सुं नीर लै, रावल छंट उठाइ ।। १७ ।।
कवित्त
'छंट उठायो जोग आय, तिहाँ सखी विचख्खण, रावल-रूप अनूप, अंग वत्तीसे लख्खण । तव पदमावति हार, तोड़ नवसर दी भिख्या, मुकताफल भरि थाल, नाथ पै लाई सिख्या । कर जोडि गुरू आगे धरे, देख नाथ असे कहै, जो जिस लायक होय सो, तैसी ही भिख्या लहै ॥१८॥ चल्यो आप जोगेंद्र, चलित राजा-गृह आयो, देख राय हरसियौ, सीस ले चरण लगायो। आज पवित्र भया गेह, नेह धरि गरू पधारे, आज सफल मुझकाज, बड़े हैं भाग हमारे ।