Book Title: Padmini Charitra Chaupai
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 265
________________ गोरा वादल चौपई] [१८५ कवित्त दियो भेख जोगेंद्र, कान मुद्रा पहिराई, कंथा सिंगी गले, अंग बभूत चढाई । कपट जटा, करदंड, मोरपंख विझ्झण झोलै, वज्र कछोटो पहिर, अलख अगचर मुख बोले, कर-पंकज पात्र अनूप ले, राज द्वार जव आवियो, नृप सुता निरख पदमावती, तव सु राज मुरझाइयो ।॥ १६ ॥ दूहा मन मोह्यो पदमावती, देख रूप अति राइ, कहै सखी सुं नीर लै, रावल छंट उठाइ ।। १७ ।। कवित्त 'छंट उठायो जोग आय, तिहाँ सखी विचख्खण, रावल-रूप अनूप, अंग वत्तीसे लख्खण । तव पदमावति हार, तोड़ नवसर दी भिख्या, मुकताफल भरि थाल, नाथ पै लाई सिख्या । कर जोडि गुरू आगे धरे, देख नाथ असे कहै, जो जिस लायक होय सो, तैसी ही भिख्या लहै ॥१८॥ चल्यो आप जोगेंद्र, चलित राजा-गृह आयो, देख राय हरसियौ, सीस ले चरण लगायो। आज पवित्र भया गेह, नेह धरि गरू पधारे, आज सफल मुझकाज, बड़े हैं भाग हमारे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297