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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
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mmmm.ढाल-(२०) नाथ गई मोरो नाथ गई ए देशी। दिल्ली का नाथ, हिव तु देख हमारा हाथ मिया ऊभो।
उभो रहे रे ऊभो रहै, ऊभो रहैं ऊभो रहे मत छोड़े पाउ, जो पदमणी परणेवा चाह ||१॥
मीया जी ऊभा रहो। अम ऊभा तुम हुती खंति, पदमणि परणेवा बहु भंति ॥२॥मी०॥ मैं आणी छ जे तुम काज, ते हिवे तुझ देखाउं आज । मी०। राणी जाया च्यार हजार, सूर सबल मोटा जुझार ||३||मी०|| दोड़या ले हाथे करवाल, धूम मचायो माड्यो ढक चाल ||४|| दीठा ते दिली रे नाथ, सगलो वूलायो निज साथ ।।मी०॥५॥ रे रे वादल कीधो कूड, सगलो लसकर' मेल्यो झडमी॥५।। रिण रसीयो आलिम रंढाल, हलकारया जोधा जिम काल। करी किलकी जिम दोड्या देत, कायर प्राण
तजे निकसी जैत ॥मी०॥६॥ कठत करें मीलिया दल होइ, जाणे जलहर घन अति धोइ । आई जोगणी जाणे आडंग, जुड़सी आलिम बादल जंग ॥७॥ भुजा वले आलिम सुएम, बोले वादल गोरो जेम" ॥मी० । दिली सुचढि आयो साहि, हि भिड़तो भागै मति जाय ॥८॥ मुंडीयो तो हिव जासी माम, माटी छै तो करि संग्राम मीण कहै आलिम क्या कर खुदाय, ते तो हम सुखेल्यो डाय ॥॥
१ कारिज २ निकास्यइ लेत, ३ जलद कालाहणि होइ ४ मूकि ५ हेव ।