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[ पद्मिनी चरित्र चौपई
वादल का मां को प्रत्युत्तर तव हसी वादल वीनव, हुं कित बालो माय । पूछु तुझ ने पय नमी, ते मुझ ने समझाय ॥४॥ पोटु हिवे न पालणे, फिरि' फिरि न चखुधाय । आडो करतो आगले, धान न मागु माय || ढाल (१२) श्रेणिक मन अचरिज थयो, ए देशी वादल इण परि वीनमैं, मात नहीं हुँ बालो रे रिणवट आलिम साह सु, जोइ करू ढक चालो रे ॥शावा०॥ थापी नै वली उथपु, राय राणा सुलतानो रे। तो सुकारज ए हुवै, काय मन मे डर आणो रे ॥२॥पा०|| नान्हइ किसनइ नाथियो, वासिग नाग वडेरो रे। नास करई रवि नान्हड़ो, अंधकार बहुतेरो रे ॥३॥वा॥ बालूडो केहरी वचो, भाजे गैवर थाटो रे। तो हुँ थारो छावड़ो, रिपु न्हाखु दहवाटो रे ॥४॥वा०॥ मति जाणो थे मात जी, कुल में लाज लगाऊं रे । गंजण छावो गाजतो, आज करी ने आऊरे ॥शावा०॥ जो पाछा पग चातरुतो जाणो मति रजपूतो रे । कायर वाणी किम कहैं, देखो सुत करतूतो रे ॥६॥वा०॥ सूर वचन रजपूत ना, चित मे चिंता व्यापी रे। मन माही बहु खलभली, सीख न तास समापी रेणावाला
१ धूड़ि न चूधु थाइ २ थान ३ सुनि पुत्र नउ ।