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पद्मिनी चरित्र चौपई]
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भोजन री मुगले भली रे लाल, कीधी भाड़ा झाडिमन उपरि गौरस आथणी रे लाल, परुसै पदमणि माड़।मन० ॥२१।। चलू करी मूछण दीयारे लाल, लूग सुपारी पान । मन० । 'लालचंद' कहै साभलो रे लाल, तुरक कर अति तान ।मन॥२२॥ दासी के सौन्दर्य पर मुग्ध सुलतान को राघव चेतन का
पमिनी दिखाना
दोहा ज्यु ज्युदासी नव नवी, सझि आवइ सिणगार । देखि देखि चित चमकीयो, आलिम भोजन वार ॥१॥ रूप अनूपम रंभसम, उवा पदमी कहै याह । वार वार विह्वल थको, पै आलिम साहि ॥२॥ एक नहीं अम घर ईसी, कैंसा हम पतिसाहि । याकै एती पदमणी, देखत उपजै दाह ॥३॥ वार वार झवखो किसुं, राघव बोलै एम । ए दासी पदमिणी तणी, आप पधारइ केम ॥४॥ चुंप दे के देखो चतुर, विचली म करो वात । सहस दोय सहेलीया, रहै संग दिन राति ॥ ५॥ ढाल (६) हसला ने गलि चूघरमालकि हसलउ भलउ, ए देशी व्यास कहै सुणि साहिबा, पदमणि नो हे साचो सहिनाण कि। काची कंचन वेलसी, नहिं रूपे हे एहवी इंद्राणि कि ।। १ ।। “मवकै जाणे वीजली, अंधारै हे करती उजासकि । भमर सदा रुणझुण करई, मोह्या परिमल हे नवी छंडे पास कि
||सुन्दरि भनी।