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पझिनी चरित्र चौपाई
दहा वचन विमासी बोलियइ, ए पंडित नो न्याय । अविमासी कारिज करइ, ते नर मूरख राय ।।१।। स्त्री वालक पुहोवीधणी रे, ए तिहुँ एक सभाव । मेरे० रढ नवि छाडे आपणी रे, भावे तो घर जाय । मेरे० ॥१६॥ आवी अनाथ जाणे नहीं रे, वालिभ ए जण च्यार मेरे० दालक मगण प्राहुणो रे, लाड गहेली नार मेरे० ॥ १७ ॥ एहवो कोइ मतो करो रे, आलोची मन आप मेरे० आलिमपति पाछो फिर रे, तो चकें सब पाप मेरे० ॥ १८ ॥ आपणो मन आलोचि ने रे, जे करसी निज काज मेरे० ते पामे सुख सम्पदा रे, 'लालचन्द' मुनिराज मेरे० ॥ १६ ॥ शाही हठ का छल से प्रतिकार कर दिल्ली पुनरागमन
व्यास कहै तुमे साभलो, सुभट होइ सव एक । हिकमति एक करो हिवै, फिरें साहि रहे टेक ॥ १॥ मदझर मातंग' पाचसे, सोवन जडित साधार। पाखरिया पंच सहस, कोडि एक दीनार ॥ २ ॥ सिणगार्यो पटकूल सु, नव नव भाते नाव ।
सोवन कलस सरस रच्यो, भरयो वस्तु बहुभाव ।।३।। १ माता २ साखित सार ३ वलि पाखरिया सइससय ४ सा सिर ठवङ