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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
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कपट प्रपंच रचना
दूहा छानो कोइक छल करो, मति प्रकासो मम । कपटै वात करो इसी, जिम रहै सगली सर्म ।। १ ।। करो सुस जेते कहै, बोल बंध सवि साच । हम मुसाफ उपारि है, विचलां नहिं वाच ॥ २ ॥ इम विचारि गढ मूकीया, जे पाका परधान । रावल' सुइण परि कहै, करी तसलीम सुजाण ।। ३ ।। मेल करण हम मूकीया, जो तुम मानो बात । प्रीत वधे हम तुम प्रगट, सबही एह सुहात ॥ ४ ॥ दरस देखि पदमणि तणो, भोजन करि तसु हाथ । आहीठाण गढ देखि नै, साहि चलंगे साथ ॥ ५॥ ढाल (३) बात म काढो व्रत तणी ए देशी २ काची कली अनार की रे तासु तणी वातां सुणी, वोलै राव रतनो रे । सुणि हो राजन्ना। गढ तुम हाथ आव नहीं, जो करो कोड़ि जतनो रे ॥ १॥ ता० पाणी वलतो ही पतीजीई, जो उठावै मुसापो रे । सुस कर मन सुध स्यु, छोडै सकल कलापो रे ॥२॥ ता० वलि प्रधान इम वीनवे, सुणि हिन्दू पतिसाहो रे। देश गाम दूहवा नहीं, दंड तणी नहिं चाहो रे ।। 3 ।। ता०॥ राजकुमारी मागा५ नहि, नहिं तुमस्यु दिल खोटो रे। नाक नमणि हम सुकरो, देखाडो चित्रकोटो रे ॥ ४॥ ता०
१ राणा २ चलें ले ३ पिण जउ मेल करइ मछइ रेहां, तउ उठावी मसाफ ४ किलाफ ५ परणउ ६ अउ तुम ।