________________
२८]
[पद्मिनी चरित्र चौपई
एक दिन कोमल पाखडी रे लाल, भाट लेइ निज हाथ रे सोग आवी सभा मे वीन रे लाल, चिरंजीवो नरनाथ रे सो० ॥८॥
अथ भाट वार्य
॥ कवित्त ।। एक छत्र जिण पुहवी, निश्चल कीधी घर उप्पर । आणं कित्ति नव खंड, अदल कीधी दुनीय प्पर ।। नल वीनल विभाडि, उदधि कर पाउ पखालिय । अंतेउर रति रंभ, रूप रंभा सुर टालीय ॥ हेतम दान कवि मल्ल कहि, अमर धुन्नि वे वखत गनि । दीठो न कोइ रवि चक्क लगि, अलावदी सुलतान विणि ।।
ढाल तेहिज पातिसाह अलावदी रे लाल, देखी अनोपम तेहरे सोभागी साहि झ्यो तेरे हाथ मे रे लाल, भाट कहो क्या एहरे सो०६ राजहस' पंखी रहें रे लाल, मान सरोवर माहि रे सो०।। तिण पंखी नी पाखडी रे लाल, ते देखी पतिसाहि रे सो० १० मोज देई मे ने इम कहें रे लाल, वाह वाह वे वाह रे सो०। कहुँ वे ऐसी अउर भी रे, चीज देखी कहिनाह रे सो०॥१शाच०॥
पद्मिनी स्त्री के प्रति आकर्षण ता परि भाट कहै सुणो रे लाल,
सब गुण पदमणि माहि रे सो०। १ कर सलाम मट चितवई रे लाल सुग दिल्ली पति साह रे सो०