________________
( २७ ) और वहा के भंडारों की जानकारी भी कम प्रकाश मे आई है। उनके उल्लिखित, रासों में पद्मिनी चौपाई ही अधिक प्रसिद्धि प्राप्त है, अन्य ३ रासों की एक-एक दो-दो प्रतिया मिली हैं। तीन रासो के तो नाम व प्रतियां भी कहीं नहीं मिली, पर कवि की अन्य रचनाओं मे उनकी सूचना प्राप्त होती है।
आज से ३२-३३ वर्ष पूर्व जब हमने हस्तलिखित-ज्ञान भण्डारो का अवलोकन प्रारम्भ किया और अपने संग्रहालय के लिए प्रतियो का संग्रह प्रारम्भ किया तो कवि लब्धोदय की पद्मिनी चरित्र चौ० की प्रतिया ज्ञानभडारो मे देखने को मिली तथा हमारे संग्रह मे भी १ प्रति सगृहीत हुई। स० १६६१ मे 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' भाग १५ अङ्क २ मे श्री मायाशंकर याज्ञिक ने अपने 'गोरा बादल की बात' नामक लेख में पद्मिनी चरित्र का सर्व प्रथम परिचय हिन्दी जगत को दिया। उनके 'संग्रह मे इसकी एक प्राचीन हस्तलिखित प्रति थी। उन्होंने पद्मावत और 'गोरा बादल की बात' के कथानक से इस पद्मिनी चरित्र मे जो अन्तर है उसका सक्षिप्त परिचय उस लेख में दिया था। इस ग्रन्थ के रचयिता का नाम उन्होंने भ्रमवश लक्षोदय लिख दिया था और वह भूल काफी वर्षों तक दुहराई जाती रही। अतः हमने 'सम्मेलन पत्रिका' वर्ष २६ अंक १-२ में .'जन कवि लब्धोदय और उनके ग्रन्थ' नामक लेख प्रकाशित करके इस भूल को संशोधन करते हुए कवि की रचनाओं का परिचय भी प्रकाशित किया । सं० १९६२ में 'युगप्रधान श्रीजिन