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पद्मिनी चरित्र चौपई ]
[१७ बाहिर नव-नव खेल हो रा० राति दिवस करतोरहतोखडोजी। मुहल मूल न देइ हो रा० मास्यो होइं रखे राजा बडो जी ।।२।।
चित्तौड़ आगमन करता एहवी बात हो रा० राजा आयो रतन सुहामणो जी। हवर दोय' हजार हो रा० गेंवर दोय सहस गाजे घणा जी॥३॥ पालखी परधान हो रा० दोय हजार सहेली सुंदरी जी। पटराणी ता वीच हो रा० सोवन कलसे पालखी करी जी ।।४।। मदमाता मातंग हो रा हींसे हय पायक वल अति घणाजी। आया ते चित्रकोट हो रा० शूरा पूरा सुभष्ट सुहामणा जी ॥शा नेजा कुहक वाण हो रा० वाजे वाजा पंच शवद भला जी। सूणीय नासें शत्रु हो रा० रजि उडी रवि छायो वादला जी॥६॥ परदल आया जाणि हो रा० कोलाहल हलचल हुई अति घणीजी। चित चमक्यो वीरभाण हो रा० धाया शूर सुभट
जूझण भणी नी ॥७॥ तेहवें नृप नउ दूत हो रा० कागल लेई राजमहले गयो जी। वाची सगली बात हो राजेसर जी
__गढपति आयो गढ आणंद थयो जी॥८॥
चित्तौड़ प्रवेशोत्सव बोलावी कोटवाल हो रा० बुहारी' जल छाट्या वली जी। फूल अवीर विछाय हो रा०सिणगाख्या बाजारहो सोभाभलीजी।।
१ चार २ बुहरावै जल छंटाव्या गली जी