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( ५३ ) की आहूति देने के लिए प्रस्तुत थी ही, पर किसी युक्ति से राणा भी मुक्त हो जाय और उसे भी तुकों के कब्जे में न जाना पडे, ऐसा उपाय सोचने लगी।
पद्मिनी ने सुना था कि गोरा वादल नामक वीर काकाभतीजा किसी वात पर राणा से नाराज होकर घर जा बैठे है
और उन्होंने ग्रास-गोठ को भी त्याग दिया है। वे चित्तौड़ त्याग कर काम-काज के लिए अन्यत्र जाने को प्रस्तुत हो रहे
थे, उसी समय अचानक शाही आक्रमण हो गया, अतः उन्होंने चित्तौड़ छोडना स्थगित कर दिया है। अपने गाँठ का खर्च खाकर वे घर पर बैठे हुए है, (खेद है) ऐसे आत्माभिमानी वीरों को कोई नहीं पूछता। अतः उपस्थित समस्या का न्यायपूर्वक हल भी कैसे हो ? पद्मिनी उनके शौर्य की प्रसिद्धि से प्रभावित हो चकडोल पर बैठकर म्वयं वीर गोरा के घर गई। गोरा ने उसका स्वागत करते हुए कहा-माताजी! आज मेरे घर पधार कर आपने बडी कृपा की, घर बैठे गगा प्रवाह आने से मैं पवित्र हो गया, मेरे योग्य जो काम सेवा हो उसे फरमाइये ! पद्मिनी ने दुःख भरे शब्दों में कहा-क्या करूं? ऐसे विकट समय में सुभटों ने क्षत्रवट खो कर मुझे तुर्कों के यहाँ भेजना स्वीकार कर लिया है,अब मुझे एकमात्र आपका ही भरोसा है, मैं इसी हेतु आपके पास आई हूँ ! गोरा ने कहा-माताजी ! हमें कौन पूछता है ? हम तो अपनी गांठ का खर्च खाकर घर में बैठे हैं, पर आपने हमारे घर को चरण-धूलि से पवित्र कर