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[ पद्मिनी चरित्र चौपई ढाल १-चउपई नी, राग रामगिरी
चित्तौड़-वर्णन देश बडो 'मेवाड' दयाल, प्रारथिया दुखिया प्रतिपाल । 'चित्रकूट' तिहा चावो अछ, पहोवी गढ बोजा तमु पर्छ ।।१।। गावै मीठे सुर गंधर्व, सुरनर किन्नर देखे सर्व । तापस तीर्थ तिहा अति कडा, राम जिहा वनवासे रह्या ||२|| अंचो गढ लागो आकास, हर मूल्यो जाण्यो कविलास । हर राणी तव कीधोहास, हिम' गढ चढ़ीयो हेमाचल पास ||३|| वले अति बाको छै गढ घणो, ऊंची पोलि अनैं सोहामणो। कोसीसा जे ऊचा कीया, गयण आलंवन थाभा दिया ॥४॥ वह नदी सीमा विस्तार, कूप सरोवर' वावि अपार । गौमुखकुंड प्रमुख बहुकुंड, पाणी जास पीई पट खंड ॥२॥ संचा वस्त अनेको तणा, का न रहइ मननी कामिणा । ऊ चा तोरण महल अनेक, एक-एक थी अघिका एक ॥६॥ सोवन दण्ड धजा करि सोहता, मनड़उ भविक तणा मोहता। दीपै तिहा जिन शिव देहरा, मोटा सिहर सरद मेहरा ॥५॥ वारू चउरासी बाजार, हुँसी बैठा हारो हार । राज महल अति रलीयामणा, पुण्य बिना ते नहिं पावणा ||८|| च्यारे वर्ण वसइ अति चंग, पवन अढारे मन में रंग। माणिकचउक न लहैं माग, वन वाड़ी फल फूल्या वाग ।।६।।
१ इम २ रच्यौं ३ वलय तीन ४ चित्रा ५ कूवा सरवर