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( ५७ ) से इस प्रकार वेष्टित किया जाय कि मानों पद्मिनी के सौरभ से आकृष्ट भ्रमर-गुजार से बचने के लिए ही ऐसा किया गया हो! सुभटों वाली पालकियों में पद्मिनी की सखियाँ है ऐसा "प्रचारित किया जाय। गढ़ से लेकर सेना पर्यन्त इस प्रकार 'पालकियाँ आयोजित हों कि उनकी कड़ी सी जड़ जाय। इस सारे काम को सम्पन्न करने में कुछ विलम्ब करना इधर मैं सुलतान के पास जाकर पहले राणाजी को छुड़ा ल उसके बाद धात किया जायगा ! इस प्रकार बादल अपनी सारी योजना समझा कर सुलतान के पास गया। सुलतान हर्षपूर्वक उससे मिला और पूछने लगा कि काम बनाया कि नहीं ? बादल ने कहा-किसी प्रकार समझा-बुझाकर पद्मिनी को सखियों के परिवार सहित लाया हूँ, सारी पालकियाँ गढ से उतर कर आ ही रही है । पर सब लोग इस बात से शंकित है कहीं राणा भी न छूटे और रानी भी चली जाय। अतः उनके आश्वस्त होने के लिए आपकी सेना का यहा से प्रयाण हो जाना आवश्यक है । यदि आपको भय हो तो पाच हजार सेना अपने पास रख सकते हैं । पद्मिनी से मिलनोत्सुक सुलतान ने कहा-मैं भला किससे डरू? जगत मेरे से भय खाता है। तुमने भी बादल, चतुर होते हुए यह खूब कही! उसने तुरंत चार हजार सुभटों को छोड़कर बाकी समस्त सेना को तुरन्त कूच करने की आज्ञा दे दी।
सुलतान ने पुनः बादल को सिरोपाव पूर्वक लाख स्वर्ण