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"शिष्य रनसुन्दर गणि वाचक, कुशलसिंह मन हरषइ जी। सावलदास शिष्य सोभागी, पासदत्त परसिद्ध जी। खेतसी परमानन्द रूपचन्द, वाची ने जस लिद्ध जी।" ।
[रत्नचूड़ मणिचूड चौ० ] जसहर्प शिष्य वाचक सांभागी, रत्नसुन्दर सिरदार जी। शिष्य कल्याणसागर ज्ञानसागर, पद्मसागर पंडित श्रीकारजी।।
[मलयसुन्दरी चौ०] कवि के शिष्य ज्ञानसागर के शिष्य भुवनधीर अच्छे विद्वान थे, इनके रचित भुवनदीपक वालाववोध सं० १८०६ मे रचित उपलब्ध है।
उपयुक्त शिष्योंमे से कुछ की शिष्य-परम्परा अवश्य ही लम्बे समय तक चली होगी व उनमे कई कवि व विद्वान भी हुए होंगे पर हमें उनकी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी। ___ संवत् १७०६ से सं० १७४५ तक की रची हुई उपयुक्त रचनाओं से स्पष्ट है कि महोपाध्याय लब्धोदय ने ४० वर्ष तक राजस्थानी भाषा और साहित्य की विशिष्ट सेवा की थी। उनकी पद्मिनी चरित्र चौ० को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा -है। अवशिष्ट रचनाओं के प्रकाशन से कवि की काव्य-प्रतिभा का सही मूल्याकन हो सकेगा, क्योंकि यह तो कवि की प्राथमिक रचना है, उसके बाद अन्य रचनाओं मे प्रौढ़त्व अवश्य ही मिलेगा। प्रतिष्ठा लेख आदि
आपके जीवनचरित्र की उपयुक्त सामग्री मे हम देख चुके है कि आपका विहार विशेषकर मेवाड़ में हुआ था । आपने वहाँ जिनमदिर, प्रभु-प्रतिमाएँ व गुरु-पादुओं की प्रतिष्ठा भी