________________
( ३६ ) करवायी थी। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के वंशजों द्वारा निर्मापित उदयपुर की बीराणी की सेरी में स्थित ऋपभदेव जिनालय के मूल-नायक भगवान के लेख से विदित होता है कि आपके करकमलों से उपयुक्त प्रतिष्ठा हुई थी। वहाँ के यतिवयं ऋपि श्री अनूपचन्द्रजी द्वारा प्राप्त लेख यहाँ दिये जा रहे है :
"संवत् १७४३ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्री वृहत् खरतर गच्छे प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्री जिनरगसूरि भट्टारक्स्यादेशान् महोपाध्याय श्री ज्ञानराज गुरुणा शिष्य महोपाध्याय श्री लब्धोदय गणिभिः श्री ऋपभदेव विम्वं कारितं च वच्छावत मं० लखमी चन्देन पुत्र मं० रामचन्द्रजी भ्रातृ सा० रघुनाथ जी भ्रातृजयं सवलसिंह पृथ्वीराज वाई हरीकुमरीकया श्रेयोथं ।
सवत् १७४३ . श्री जिनरंगसूरि विजये युगप्रधान श्री जिनकुशलमृरिणा पादुके कारिते प्रतिष्ठिते च महोपाध्याय श्रीलब्धोदय । संवत् १७२१ (१) वर्ष चंत्र द्वादशी". श्री लब्धोदय गणि। ___ 'श्री जिनकुशलसूरि च० प्रतिष्ठितं महोपाध्याय श्री ज्ञानसमुद्राणा शिष्य महोपाध्याय ज्ञानराज महोपाध्याय श्रीलब्धोदयवाचक रत्नसुन्दरयुक्त। __ इसके अतिरिक्त सं० १७४८ की भी एक जोड़ी चरणपादुका प्रतिष्ठित विद्यमान है । टाइल्स लगा देने से लेख अव दब गए है, एक लेख का निम्नलिखित अंश पढने में आता है :- "शिष्य महोपाध्याय श्री ज्ञानसमुद्राणा महो० श्री ज्ञान'राजाना शिष्य लालचन्द्रोपाध्यायः ।