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गोरा वादल कथा के रचयिता नाहर जटमल
कवि जटमल नाहर की गोरा वादल कथा गद्य मे होने की भ्रान्ति हिन्दी के विद्वानों मे चिरकाल तक रही है । एसियाटिक सोसायटी-कलकत्ता की जिस प्रति के आधार से यह भ्रान्ति फैली थी, उस प्रतिका निरीक्षण कर भ्रान्ति का निराकरण स्वर्गीय पूरणचन्दजी नाहर व स्वामी नरोतमदास जी के प्रयत्न से 'विशाल भारत' पोप १६६० व नागरी प्रचारणी पत्रिका वर्प १४ अंक ४ में प्रकाशित लेखों द्वारा हुआ। यह निश्चित हो गया कि बास्तव में जटमल ने गोरा बादल कथा पद्य मे ही लिखी थी पर उन्नीसवीं शती मे गद्य मे लिखे गए अर्थ के कारण जटमल के गद्यकार होने की भ्रान्त परम्परा चल पड़ी। उसके बाद डा० टीकमसिंह तोमरने 'गोरा बादल कथा' की एक प्रति का पाठ गलत पढ कर जटमल की जाति जाट होने का उल्लेख शोध प्रबन्ध में किया जिसका निराकरण भी नागरी-प्रचारणी पत्रिका द्वारा किया गया।
हिन्दी के विद्वानों को जटमल की केवल 'गोरा वादल कथा' नामक एकही रचना की जानकारी थी। हमने जव बीकानेर के ज्ञानमंडारों का निरीक्षण किया व अपने ग्रन्थालय के लिये हस्तलिखित प्रतियों का संग्रह प्रारम्भ किया तो जटमल की अन्य कई रचनाओं की प्राप्ति हुई। फलतः हमने हिन्दुस्तानी वर्ष ८ अं० २ मे 'कवि जटमल नाहर और उनके