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( २५ ) महोपाध्याय लब्धोदय और उनकी रचनाएँ
राजस्थानी साहित्य की श्री वृद्धि करने मे जैन कवियों का योगदान बहुत ही उल्लेखनीय है। अपभ्रंश से राजस्थानी भाषा का विकास हुआ तव से लेकर अवतक सैकड़ों कवियों ने हजारों रचनाएं राजस्थानी गद्य व पद्य मे निर्मित की। नीति, धर्म सदाचार के साथ-साथ जीवनोपयोगी प्रत्येक विषय की राजस्थानी जैन रचनाएं मिलती हैं। राजस्थानी साहित्य की विविधता और विशालता जैन विद्वानों की अनुपम देन है। पन्द्रहवीं शती तक राजस्थान और गूजरात, सौराष्ट्र, कच्छ और मालवा जितने व्यापक प्रदेश की एक ही भापा थी। तेरहवीं शती से पन्द्रहवीं शती तक की जेनेतर रचनाए बहुत ही अल्प मिलती हैं पर जैन कवियों की प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण मे विविध काव्य रूपों एवं शैलियो की सैकड़ों रचनाएं उपलब्ध होती है। पन्द्रहवीं शती तक की जैन रचनाएं अधिकांश छोटी-छोटी है, पन्द्रहवीं के उत्तरार्द्ध से कुछ बड़े रास रचे जाने लगे और सतरहवीं शताब्दी से
तो काफी बड़े-बड़े रास अधिक संख्या मे रचे गये । , रास, चौपाई, फागु, विवाहला आदि चरित-काव्य पहले
विविध प्रसंगों में व मन्दिरों आदि मे खेले भी जाते थे अतः उनका छोटा होना स्वाभाविक व जरूरी भी था पर जव रास