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ओसवाल जाति की उत्पत्ति
जैनाचायों के मत से ओसवालों की उत्पत्ति
विक्रम संवत् १३९३ का लिखा हुआ एक हस्तलिखित उपकेशगच्छ चरित्र नामक ग्रन्थ मिलता है। उसमें तथा भौर भी जैन ग्रंथों में मोसवाल जाति और भोसियाँ नगरी की उत्पत्ति के विषय में जो कथा लिखी हुई है वह इस प्रकार है:
आसियां नगरी की स्थापना
वि० सं० से करीब चार सौ वर्ष पूर्व भीनमाल नगरी में भीमसेन मामक राजा राज्य करता था, जिसके दो पुत्र थे। जिनके नाम क्रमशः श्रीपुज और उपलदेव था। एक समय युवराज श्रीपुष और उपलदेव के बीच में किसी कारण वश कुछ कहा सुनी हो गई जिस पर श्रीपुंज ने ताना मारते हुए कहा कि इस प्रकार के हुकम तो वही चला सकता है जो अपनी भुजाओं के बल से राज्य की स्थापना करे । यह ताना उपलदेव को सहन न हुभा और वह उसी समय नवीन राज्य स्थापन की प्रतिज्ञा करके अपने मंत्री उहद भौर उधरण को साथ ले वहाँ से चल पड़ा । उसने देखीपुरी (दिल्ली) के राजा साधु की आज्ञा लेकर मंडोवर के पास उपकेशपुर या भोसियां पट्टण नामक नगर बसा कर ही अपना राज्य स्थापित किया उस समय भोसियाँ नगरी का क्षेत्रफल का बहुत लम्बा चौड़ा था । ऐसा कहते है कि वर्तमान भोसियाँ नगरी से १२ मील पर जो तिवरी गाँव है वह पहले भोसियों का तेलीवाड़ा था तथा जो इस समय खेतार नामक ग्राम है वह पहले यहां का क्षत्रीपुरा था। इसी प्रकार भौर मुगलों के निशानात भी पाये जाते हैं।
ओसवाल जाति की स्थापना
राजा उपलदेव वाममार्गी था और उसकी खास कुलदेवी चामुंग माता थी । इसी समय में जैनाचार्यों में भगवान पार्श्वनाथ के • वें पाटश्वर आचार्य रमप्रभसूरिजी अपने उपदेशों के द्वारा जैनधर्म का प्रचार करते हुए आबू पहाड से होते हुए उपकेशपट्टण में पधारे और पास ही लूणाद्री नामक छटी सी पहाड़ी पर एक २ मास के उपवास की तपश्चर्या कर भ्यानावस्थित हो गये । इस समय पाँच सौ मुनियों का संघ उनके साथ था। कई दिन होने पर भी जब उन मुनियों के लिये शुद्ध मिक्षा की व्यवस्थाउस नगरी
* इस विषय में दो मत और पाये जाते है पहला यह कि पट्टावली नं. ३ में भीमलेन के एक पुत्र मीपुज था जिसके सुरसुन्दर एवं उपलदेव नामक दो पुत्र हुए। दूसरा यह कि भीमसेन के तीन पुत्र थे जिनके नाम क्रमशः उपलदेव, भासपाल भौर भासल थे। जिनमें से उपलदेव ने भोसियाँ तथा भासल ने मिनमाल बसाया ।