________________ नित्य नियम पूजा [ 29 - मत्तगयन्द छन्द श्री जिननो पदपंकजको नमि नित्य सही विधि न्होंन प्रसाएँ। ताहित सन्मुख तिष्ठत उज्वल द्रव्य सुधार यहां विस्तार / / कंचन पीठक मैं करि स्वस्तिक पुष्प सुगंधित धोकरि डारें। तामधि तोय शिवालय-नायक हो अभिषेक हितार्थ सुधारें। ॐ ह्रीं सिंहपीठे जिनबिम्बं स्थापयाम्हम् // नीर महाशचि गंधक चन्दन अक्षत पुष्प सु ले अनियारे। व्यंजन सजुत ले चरू उत्तम दीप धूप फल अर्घ सु धारे // यों वसु द्रव्य तनों करि अर्घ उतारि-उतारि यजों पद थारे / यो मुझ शीघ्र शिवालय वास सदा तुम भव्य उबारन बारे // ___ॐ ह्रीं स्नपनपीठे स्थित-जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामोति स्वाहा / कृत्रिम और अकृत्रिम बिम्ब सनातन राजत श्री जिन तेरे / तास तनी इन्द्र उपासन ठानत भानत कर्म करे रे। क्षीर समुद्र नदी नद तीरथ तास तनों जल प्रासुक हरे / कंचन कुभ भरे परिपूरण ल्याय यथाक्रम उत्थित टेरे // 1 // कर्मजंजीर जरयो यह जीव शुभाशुभ भोगत ज्ञान न पायो। पै अब कालसुलब्धि प्रसाद लह्यो तब दर्शन आनन्द आयो / हो तुम कर्मकलङ्क-विनाशक प्रेम तउ इत प्रेरित लायो। हो गनकार करों अभिषेक वरों शिवनारि समय अब आयो। यो कहि दीप चहों दिशि जोय कियो बहु धुमसु धूपक केरो। वाजत ताल सुवीन मृदङ्ग शची पुनि नाचत भाव सु टेरो॥