________________ नित्य नियम पूजा क्षेत्र वास्तु अरू रत्न स्वर्ण, धन धान्य द्विपद अरु चतुकचणे अरु कोप्यो भांड दश बाह्य भेद, परिग्रह त्यागे नहीं रंचखेद मिथ्यात तज्या संसार मूल,मुनि हास्य अरंति रति शोकशूल भय सप्त जुगुप्सा स्त्रीय वेद पुनि पुरुष वेद अरु क्लीव वेद 4 अरु क्रोध मान माया रु लोभ, ये अंतरङ्गमें करत क्षोभ / इमि ग्रंथ सबै चौवीस येह, तजि भए दिगम्बर नग्न जेह 5 गुणमूल धारि तजि राग दोष, तप द्वादश धरि तन करत शोष तग कंचन महल मसान मित्त अरु शत्रुनिमें समभाव चित्त 6 अरु मणि पाषाण समान जास, पर-परणतिमें नहिं रंच वास यह जीव देह लखि भिन्न२, जे निज स्वरूपमें भाविकिन्न 7 ग्रीषमऋतु पर्वत शिखर वास. वर्षा में तरुतल है निवास / जे शीतकालमें करत ध्यान, तटनीतट चोहट शुद्ध थान 18 हो करुणासागर गुण अगार मुझ देहि अखय सुखको भंडार / मैं शरण गही मुझ तार 2, मो निज स्वरूप द्यो बार बार 9 // धत्ता // यह मुनि गुणमाला, परम रसाला जो भविजन कंठे धरही। सबविघ्नविनासहि,मंगल भासहि,मुक्तिरमा वह नर वरही ॐ ह्रीं भूतभविष्यत्वर्तमानकाल संबंधिपचप्रकारऋषिश्वराया। दोहा-सर्व मुनिनकी पूजा यह, करै भव्य चित्त लाय / वृद्धि सर्व घरमें बसै, विघ्न सबै नशि जाय // 11 // इत्याशीर्वादः /