________________ 234] नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूप निर्चपामीति स्वाहा / बहुविधि में ऋतुफल लाय चरण चढावत हूँ। शिवपद चिरसुख मिल जाय, यह मन भावत हूं ॥श्री. / ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फल निपामीति स्वाहा / जल फल बसु द्रव्य मिलाय, अर्घ चढावत हूँ। शिवपद निजपद मिलजाय, तुम पद अर्पत हूँ // श्री मुनिसुव्रत भगवान, भवदधि पार करो / मन वच तन पूजू आज, संकट दूर करो / / + ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय अनपद प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा / जयमाला। (चाल-केवल रवि किरणोंसे जिनका संपूर्ण प्रकाशित है अंतर) "प्रभु चरण तुम्हारे आकर के, भक्तिके सुमन चढाता हूँ। विस्तृत है तेरी यशगाथा, उसका मैं पार न पाता हूँ। जो शरण तुम्हारे आता है, भवदधिसे पार चलानाता। वह जनम मरण के दुःखोसे, क्षणभरमें छुटकारा पाता / / वैशाख वदी दशमी के दिन, प्रभु राजगृहीमें जन्म लिया। इन्द्रोंने जन्म कल्याणका, उत्सवकर अतिशय पुण्य लिया। हुवे चार कल्याणिक राजगृही, सम्मेदशिखरसे मोक्ष गये / चकर्म नाशकर सिद्धभये, अविनाशी अनंत सुख प्राप्त किये / /