Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): Digambar Jain Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 248
________________ नित्य नियम पूजा [ 239 मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दष्टि सुखद जमती नासा पर। क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेषका लेश न पाया / वीतराग तुम कहलाते हो, सब जगके मनको भाते हो / कौशाम्बी नगरी कहलाए, राजा धारणजी बतलाए / सुन्दर नाम सुसीमा उनके, जिनके उरसे स्वामी जन्मे / कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरव बतलाई / / इक दिन हाथी बंधा निरखकर, झट आया वैराग उमड़कर / कार्तिक सुदी त्रयोदश भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी।। सारे राज पाटको तजके, तभी मनोहर वनमें पहुंचे। तप कर केवल ज्ञान उपाया, चत सुदी पूनम कहलाया / / एक सौ दश गणधर बतलाए, मुख्य वज्र चामर कहलाए। लाखों मुनि आर्जिका लाखों,श्रावक और श्राविका लाखों। असंख्यात तियंव बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये। फिर सम्मेदशिखरपर जाकर, शिवरमगीको ली परणाकर / / पंचम काल महा दुखदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई। जयपुर राज ग्राम बाडा है, स्टेशन शिवदासपुरा है / / मूला नाम जाटका लड़का, घरकी नींव खोदने लागा / खोदत खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनताको बतलाई / / चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पद्म प्रभुकी मति बताई। मनमें अति हर्षित होते हैं, अपने दिलका मल धोते हैं /

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