________________ 2.42 / नित्य नियम पूजा अतिशय चन्द्र प्रभुका भारी, सुनकर आते यात्री भारी / फाल्गुन सुदी सप्तमी प्यारी, जुडता है मेला यहां भारी / कहलानेको तो शशि धर हो, तेज पुज रविसे बढ़कर हो / नाम तुम्हारा जगमें सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा / राक्षस भूत प्रेत सब भागे, तुम सुमरत भय कभी न लागे। कीर्ति तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी। जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी / जो भी जैसी आश लगता, पूरी उसे तुरत कर पाता / दुखिया दर पर जो आते हैं, संकट सब खा कर जाते हैं खुला सभीको प्रभु द्वार है, चमत्कारको नमस्कार हैं। अन्धा भी यदि ध्यान लगावे, उसके नेत्र शीघ्र खुल जावें। बहरा भी सुनने लग जावे, गहलेका पागलपन जावे / अखंड ज्योतिका घृत जो लगावे,संकट उसका सब कट जाये। चरणोंकी रज अति सुखकारी, दुख दरिद्र सब नाशनहारी / चालोमा जो मनसे ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे / पार करो दुखियोंकी नैषा, स्वामो तुम बिन नहीं खिवैया / प्रभु में तमसे कुछ नहिं चाहूँ, दर्श तिहारा निश दिन पाऊँ / करू वन्दना आपकी, श्री चन्द्र प्रभु जिनराज / जंगल में मंगल कियो,. रखो 'सुरेश'की लाज.!!,