________________ नित्य नियम पूजा [ 241 जय श्रीचंद्र दयाके सागर, देहरे वाले ज्ञान उजागर / शांति छवि मरति अति प्यारी, मेष दिगंबर धारा भारी / नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहनी मूरति कितनी प्यारी। देवोंके तुम देव कहावो, कष्ट भक्तके दूर हटावो / समंतभद्र मुनिवरने ध्याया, पिंडी फटी दर्श तुम पाया / तुम जगमें सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थङ्कर कहलायो / महासेनके राजदुलारे, मात सुलक्षणाके हो प्यारे / चन्द्रपुरी नगरी अति नामी, जन्म लिया चन्द्र-प्रभु स्वामी / पौष वदी ग्यारसको जन्मे, नर नारी हरषे तब मनमें / काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी। फाल्गुन वदी सप्तमी भाई, केवलज्ञान हुआ सुखदाई / फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गये प्रभु आप वहाँसे / लोभ मोह और छोडी माया, तुमने मान कसाय नसाया / रागी नहीं, नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी। पंचम काल महा दुखदाई, धर्म कर्म भूले सब भाई / अलवर प्रान्तमें नगर तिजारा, होय जहां पर दर्शन प्यारा। उत्तर दिशिमें देहरा माहीं, वहां आकर प्रभुता प्रगटाई / सावन सुदी दशमी शुभ नामी, आन पधारे त्रिभुवन स्वामी। चिन्ह चन्द्रका लख नर नारी, चंद्रप्रभुकी मूरती मानी / मूर्ति आपकी अति उजियाली, लगता हीरा भी है जाली।