________________ 240 ] नित्य नियम पूजा तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत प्रेतको दूर भगाया। अब गंधोदक छींटे मारे, भूत प्रेत तब आप बकारे / जपनेसे जब नाम तम्हारा, भूत प्रेत वो करे किनारा / ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आंखे पाते हैं / प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ही हिरदयको भाए / ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस भवसे वह नर तरता है / अन्धा देखे गूगा गावे. लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे / बहरा सुन-सुन कर खूश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे / / मैं हूँ स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा। चालीसेको चन्द्र बनावे, पद्म प्रभुको शीश नवावे // नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन खेय सुगंध अपार, पद्मपुरीमें आयके // होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो / जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जगमें चले / -+श्री चन्द्रप्रभु चालीसा वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिन वाणीको ध्याय / लिखनेका साहस करू चालीसा सिर नाय / / देहरेके श्री चन्द्रको पूजों मन वच काय / ऋद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय //