Book Title: Nitya Niyam Puja
Author(s): Digambar Jain Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 'नित्य नियम पूजा [ 247 एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डपुर धामा / सिद्धारथ नृप सुत कहलाये, त्रिशला मात उदर प्रगटोये / तुम जनमत भयो लोक अशोका,अनहद शब्दभयो तिहुंलोका। इन्द्रने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा / कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी / अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी। शांत भावधर कर्म विनाशे तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे / जड-चेतन त्रय जगके सारे, हस्त रेखवत सम तू निहारे / लोक अलोक द्रव्य षट् जाना, द्वादशांगका रहस्य बखाना / पशु यज्ञोंका मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा / अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा / पंचम काल विष जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई। क्षणमें तोपनि वाडि हटाई, भक्तनके तुम सदा सहाई / अरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता। // सोरठा॥ करे पाठ चालिस दिन नित चालीसहिं बार / खेवै धूप सुगंध पढ़, श्री महावीर अगार / / जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान / नाम वंश जगमें चले, होय कुबेर समान / / 'पूरनमल' रचकर चालीसा / हे प्रभु तोहि नवावत शीशा //

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