________________ नित्य नियम पूजा [ 213 कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, तृणवत् बंधन तोड / तप धार्यो भगवान् ने, मोह कर्म को तोड / / श्रीपन / ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्ला त्रयोदश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घ नि स्वाहा / चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा उपज्यो केवलज्ञान / भवसागर से पार हो, दियो भव्य जन ज्ञान ॥श्रीपा०॥ ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ला पूर्णिमायां केवलज्ञान प्राप्ताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ नि० स्वाहा / फाल्गुन वदी सुचौथ को, मोक्ष गये भगवान / इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजौं धर ध्यान ॥श्रीपम॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा चतुर्थी दिने मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्राय अर्घ नि० स्वाहा / जयमाला दोहा-चौत्रीसौं अतिशय सहित, बाडा के भगवान / जयमाला श्री पद्मकी, गाऊ सुखद महान // पद्धरि छन्द जय पद्मनाथ परमात्मदेव, जिनकी करते सुर चरणसेव / जय पद्म 2 प्रभु तन रसाल, जय 2 करते मुनिमन विशाल / कौशाम्बीमें तुम जन्म लीन, बाडामें बहु अतिशय करीन / इक जाट पुत्रने जमीं खोद, पाया तुमको होकर समोद / सुनकर हर्षित हो भविक वृन्द, आकर पूजा की दुख निकंद। करते दुखियोंका दुःख दूर, हो नष्ट प्रेत बाधा जरुर / डाविन शाकिन सब होय चूर्ण, अन्धे हो जाते नेत्र पूर्ण / /