________________ 212 ] नित्य नियम पूजा अध्यं चरणोंका चरण कमल श्री पद्म के, वंदौं मन वच काय / अर्घ्य चढाऊ भावसे कर्म नष्ट हो जाय // बाडा के ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभ जिनेन्द्र चरणकमलेभ्यो अर्घ नि / भूमिमें विराजमानका अर्थ / 'धरतीमें श्री पनकी पद्मासन आकार | परम दिगम्बर शांतिमय, प्रतिमा भव्य अपार / सौम्य शांत अति कान्तिमय, निर्विकार साकार / अष्ट द्रव्यका अर्घ्य ले, पूजो विविध प्रकार / बाडा के.। ॐ ह्रीं श्रोपमप्रम जिनेन्द्राय भूमि में स्थित समय अर्घ्य नि / पंचकल्याणक (हर एक दोहाके बाद नीचे लिखो आंचरो पढ़ना चाहिये) श्री पद्मप्रभ जिनराजजी मोहे राखो हो शरना / दोहामाघ कृष्ण छठीमें प्रभो आये गर्भ मझार / मात सुसीमाका जनम, किया सफल करतार श्रिीपम० -ॐ ह्रीं माघ कृष्णा षष्ठी दिने गर्भ मंगल प्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ 'जिनेन्द्राय अध नि० स्वाहा / कार्तिक सुद तेरस तिथि, प्रभो लियो अवतार / देवों ने पूजा करी, हुआ मंगलाचार / / श्रीपद्म० / ह्रीं कार्तिक शुक्ला त्रयोदश्यां जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीपद्मप्रभ "जिनेन्द्राय अब नि० स्वाहा /