________________ नित्य नियम पूजा [ 227. श्रीकलिकुण्ड यंत्र को मैं अध्यात्म प्रेममें पगा हुआ। नमस्कार करता हूँ मन में भक्ति रंगसे रंगा हुआ // 4 // पड़े जेलखानों में जो हैं या बंधन में बन्धे हुए। ज्वर अतिसार ग्रहणी रोगोमें प्राणी जो हैं फंसे हुए / / सिंह करी साग्नि चोर अरु विष समुद्र के कष्ट अनेक / / . राज काजके सभी डरों को यंत्र दूर करता है एक // 5 // वंध्या स्त्री बहु पुत्र वती हो सुख का अनुभव करती हैं / सर्व अनर्थ दूर होते हैं शांति पुष्टि नित होती है / सुख अरु यश बढता है उनका जो नित पूजन करते हैं / / . श्री जिनके मुखसे निकले कलिकुण्ड यंत्रको भजते हैं // 6 // सब दोषों से रहित तथा इन्द्रो से सम्पूजित हैं वे / सर्व सुखोके दाता है अरु विघ्न विनाशकर्ता हैं ये / जो जन परम भक्तिसे पढते और अर्चना करते हैं / / पूर्ण सुखी होते हैं वे फिर मुक्ति रमा को वरते हैं // 7 // __ परिपुष्पांजलि / अथ जयमाला। दोहा-जिनवर के सुमरण किये, पाप दूर हो जाय / ज्यो रवि किरणो से सदा, अन्धकार नशि जाय // पद्धरि छन्द जय अंजन पर्वत सम जिनेश, धन गर्जन सम तब धुनि बहेय / मदमत्त शांत होता गजेश, मनमें भजते जो जन जिनेश / / 10