________________ 218 ] नित्य नियम पूजा कीने रथमें प्रभु विराजमान,रथ हुआ अचल गिरिके समान / तब तरह 2 के किये जोर बहुतक रथ गाडी हिये तोड 7/ निशिमांहि स्वप्न सचिबहिं दिखात, रथचलेग्वालका लगतहाथ भोरहि झट चरण दियो बनाय, संतोष दियो बालहि कराय करि जय जय प्रभुसे करी टेर स्थ चल्यो फेर लागी न देर / बहुनृत्य करत बाजे बजाय, स्थापन कीने तहं भवन जाय 9 इकदिन मंत्रीको लगा दोष,धरि तोप कही नृप खाइ रोष / तुमको जव ध्याया वहाँ वीर,गोलासे झट बच गया वजीर। मंत्री नृप चांदनगांव आय, दर्शन करि पुजा को बनाय // करि तीन शिखर मन्दिर रचाय कंचन कलशा दीने घराय / वह हुक्म कियो जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश / अव जुडन लगे नर व नारि तिथि चत सुदी पूनों मंझार : मीना गजर आवे विचित्र, सब वर्ण जुडे करि मन पवित्र / बहूँ निरत करत गांवें सुहाय, कोई 2 धत दीपक रह्यो चढाय कोई जय र शब्द करे गंभीर, जय जयजय हे श्री महावीर / जैन नन पूजा रचत आन, कोई छत्र चमर के करत दान / जिसकी जो मन इच्छा करंत, मन वांछित फल पावे तुरंत / जो करे बंदना एक वार, सुख पुत्र संपदा हो अपार / / जो तुम चरणों में रक्खों प्रीत, ताको जगमें हो सके जीत / है शुद्ध यहां का पवन नीर, जहां अति विचित्र सरिता गंभीर पूरनमल पूजा रची सार, जहां हो भूल लेउ सज्जन सुधार / सेरा है शमशाबाद गाम, त्रिकाल करु भुको प्रणाम / /