________________ नित्य नियम पूजा मा.................. 219. श्री वर्द्धमान तुम गुण निधान, उपमा न बनी तुम चरणनकी। है चाह यही नित बनी रहे अभिलाष तुम्हारे दरशन की। ॐ ह्रीं श्री चांदनपुर महावीर जिनेन्द्राय पूर्णाध्यं / दोहा-अष्ट कर्मके दहनको, पूजा रची विशाल / पढ़े सुने जो भावसे, छूटे जग जंजाल / / संवत जिन चौबीस सौ, है बासठ की साल / एकादश कार्तिक वदी पूना रची सम्हाल / // इत्याशीर्वादः // अतिशय क्षेत्र देहरे तिजाराके श्री चन्द्रप्रभ जिन पूजन / वर चंद्र काम कलंक वजित नेत्र मनहिं लुभावने, शुभ ज्ञान केवल प्रगट कीनों धातिया चारो हने / ऐसे प्रभुके दर्श पाये धन्य दिन यह वार है, होकर प्रगट महिमा दिखाई नमन शत शत वार है / / देहरे के श्रीचन्द्र प्रभ मम उर मन्दिर आय / तिष्ठ तिष्ठ नाथ मैं, पूजू मन वच काय // 1 // __ॐ ह्रीं देहरेके श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् / आह्वाननं अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् / अथाष्टक धीरोदधि को जल लाय, कंचन भृङ्ग भरा / तुम ढिंग दे धार नशाय, जामन मरन जरा // .