________________ 168 ] नित्य नियम पूजा स्रग्धरा छन्द / होवे सारी प्रजाको सुखबल युत हो धर्मधारी नरेशा / होवे वर्षा समै पै तिलभर न रहे व्याधियोंका अन्देशा / होवे चोरी न जारी सुसमय वरते हो न दुष्काल भारी / सारे ही देश धाएँ जिनवर वृषको जो सदा सौख्यकारी : 7 दोहा / घातिकर्म जिन नाश करि. पायो केवलराज : शांति करो सब जगतमें वृषभादिक जिनराज / / अथेष्टक प्रार्थना (मन्दाक्रान्ता। शास्त्रोंका हो पठन सुखना लाम सत्संगती का सद्बतों का सुज: कहके, दोष ढांकु सभीका / / बोलु प्यारे वचन हीतके, आपका रूप ध्याऊ / तोली सेऊं चरण जिनके मोक्ष जौलों न पाऊं।। आर्या / तब पद मेरे हिय में, मम हिय तेरे पुनित चरणों में। तबलौं लीन रहों प्रभु जबलौ पाया न मुक्ति पद मैंने / 10 अक्षर पद मात्रा से, दूषित जो कछु कहा गया मुझसे / क्षमा करो प्रभु सो सब, करूणा करि पुनि छुडाहु भव दुखसे हे जगबन्धु जिनेश्वर पाऊ तव चरण शरण बलिहारी / / मरण समाधि सुदुर्लभ कर्मोका क्षय सुबोध सुखकारी / 12 (परिपुष्पांजलि क्षेपण ) ( यहांपर नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिये)