________________ नित्य नियम पूजा अथाष्टक-गीता छन्द मैं उर सरोवर से विमल जल भावका लेकर अहो / नत पाद-पद्मोमें चढाऊ मृत्यु जनम जरा न होय / / श्री गुरु अकम्पन आदि मुनिवर मुझे साहस शक्ति दें। पूजा करू पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें। ___ॐ ह्रीं श्रीअकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा / सन्तोष मलयागिरिय चन्दन, निराकलता सरस ले / नत पादपद्मो में चढाऊं, विश्वताप नहीं जले / श्रीगुरु.चंदन तंदुल अखंडित पूत आशाके नवीन सुहावने / नत पादपमो में चढाऊं, दीनता क्षयता हने श्रीगुरु. अक्षतं। ले विविध विमल विचार सुन्दर सरस सुमन मनोहरे / नत पादपद्मों में चढाऊ कामकी बाधा हरे / श्रीगुरु.।पुष्पं / शुभ भक्ति घृतमें विनयके पकवान पावन मैं बना / नत पादपद्मोंमें चढाऊ मेटू क्षधाकी यातना |श्रीगुरु.।नैवेद्यं // उत्तम कपूर विवेकका ले आत्म दीपकमें जला / कर आरती गुरुकी हटामोह तमकी यह बला|श्रीगुरु.दीपं ले त्याग तपकी यह सुगन्धित धूप में खेऊ अहो / गुरु चरण-कणसे करमका कष्ट यह मुझको न हो श्रीगु.धूर्ण शुचि साधनाकै मधुरतम प्रिय रस फल लेकर यहां / नत पादपोंमें चढ़ाउं. मुक्ति मैं पाउ यहां / श्रीगुरु. फलं /