________________ नित्य नियम पूजा.................[ 153 . धरी तिसरी डग बली पीठ मांहीं / सु मांगी क्षमा तब बलीने बनाई // 4 // जल की सु वृष्टि करी सुक्खकारी / सरव अग्नि क्षण में भई भस्म सारी // टरे सर्व उपसर्ग श्री विष्णुजी से / भई जै जैकारा सरव नन ही 5 // चौपाई फिर राजाके हुक्म प्रमान, रक्षा बन्धन बन्धी सुजान। मुनिवर घर घर कियो विहार, श्रावकजन तिन दियो आहार जाघर मुनि नहि आये कोय, निज दरवाजे चित्र सुलोय / स्थापन कर तिन दियो आहार, फिर सब भोजन कियो संहार तबसे नाम सलूना सार, जैन धर्म का है त्योहार / शुद्ध क्रिया कर मानो जीव, जासौं धर्म बरै सु अतीव / / धर्म पदारथ जगमें सार, धर्म बिना झठो संसार / सावन सुदी पूनम जब होय, यह दो पूजन कीजै लोय / / सब भाइन को दो समझाय, रक्षाबंधन कथा सुनाय / मनिका निज वर करो अकार, मनि समान तिन देउ अहार // सबके रक्षा बन्धन बांध जैन मुनिन को रक्षा जान / इस विधिसे मानो त्यौहार, नाम सलूना है संसार / / धत्ता-मुनि दिनदयाला सबदुख टाला, आनंदमाला सुखकारी _ 'रघुसुत' नित वंदे आनंद कंदे सुख करंदे हितकारी।। ॐ ह्रीं श्री विष्णुकुमारमुनिभ्यो नमः महाघ्य निर्व० स्वाहा /