________________ 154 ] नित्य नियम पूजा दोहा-विष्णकुमार मुनि के चरण जो पूजे धर प्रीत / 'रघुसुत' पावै स्वर्गपद लहैं पुण्य नवनीत / / इत्याशीर्वादः / सलूना पर्व पूजा। (श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत मुनि पूजा ) ( चाल-जोगीरासा) पूज्य अकम्पन साधु शिरोमणि सात शतक मुनि ज्ञानी : आ हस्तिनापुर कानन में हुए अचल दृढ़ ध्यानी / / दुखद सहा उपसर्ग भयानक सुन मानव घबराये / आत्मा साधना के साधक वे, तनिक नहिं अकुलाये / योगी राज श्री विष्ण त्याग तप, वत्सलता-वश आये / किया दूर उपसर्ग, जगत-जन मुग्ध हुए हर्षाये / / सावन शुक्ला पन्द्रस पावन, शुभ दिन था सुखदाता / पर्व सलूना हुआ पुण्य प्रद यह गौरवमय गाथा // शांति दया समता का जिनसे नव आदर्श मिला है / जिनका नाम लिये से होती जागृति पुप्य कला / करू वंदना उन गुरुपद की वे गुण में भी पाऊ' / आह्वाननं संस्थापन सन्निधि-करण करू हर्षाऊ / / ॐ ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिसमूह अत्र अवतर 2 संत्रौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अक्र मम सन्निहितो भवभव वषट् सन्निधिकरणं /