________________ ...156 ] ..... नित्य नियम पूजा यह आठ द्रव्य अनूप श्रद्धा स्नेहसे पुलकित हृदय / नत पादपमोंमें चढाऊ भवपारमें होऊं अभय ॥श्रीगुरु.अघ।। जयमाला सोरठा-पूज्य अकम्पन आदि, सात सतक साधक सुधी / यह उनकी जयमाल वे मझको निज भक्ति दें। पद्धरि छन्द वे जीव दया पाले महान, वे पूर्णा अहिंसक ज्ञानवान / उनके न रोष उनके न राग, वे करें साधना मोह त्याग / / अप्रिय असत्य बोले न बैन, मन वचन कायमें भेद हैं न / ये महा सत्य धारक ललाम, है उनके चरणों में प्रणाम / / वे ले न कभी तृणजल अदत्त उनके न घनादिकमें ममत्त / वे व्रत अचोर्य दृढ धरै सार, है उनको सादर नमस्कार / / वे करें विषयकी नहीं चाह उनके न हृदयमें काम-दाह / वे शील सदा पार्ले महान,कर मग्न रहे जिन आत्मध्यान / / सब छोड वसन भूषण निवास, माया ममता अरु स्नेह आस वे धरें दिगम्बर वेष शांत होते न कभी विचलित न प्रांत // नित रहे साधनामें सुलीन, वे सहें परीषह नित नवीन / वे करें तत्पर नित विचार, है उनको मादर नमस्कार / / पंचेन्द्रिय दमन करें महान वे सतत बढ़ावें आत्मज्ञान / संसार देह सब त्याग, वे शिव-पथ साधे सतत जाग / 'कुमरेश' साधु वे हैं महान, उनके पावे जग नित्य त्राण / मैं करू वंदना बार बार वे करे भावार्णव मझे पार //