________________ 45 नित्य नियम पूजा काम नाग विष धाम, नाशको गरूड कहे हो। क्षुधा महादव-ज्वाल, तास को मेघ लहे हो।।। नेवज बहु घृत मिष्टसो (हो) पूजों भूख विडार / सीम. // 5 ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेचं नि. उद्यम होन न देत सर्व जग माहिं भरयो है। मोह महातम घोर. नाश परकाश करयो हैं। पूजों दीप प्रकाशसों (हो) ज्ञान-ज्योति करतार / सीम. 6 ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपंनि कर्म आठ सब काठ भार विस्तार निहारा / ध्यान अगनि कर प्रकट सर्व किनो निरवारा / / धूप अनुपम खेवते (हो) दुःख जलै निरधार / सीम. // 7. ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व० // 7 मिथ्यावादी दुष्ट लोभऽहंकार भरे हैं / सबको छिन में जीत जैन के मेरू खरे हैं। फल अति उत्तमसों जजो (हो) वांछित फल दातार / सी.८ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि / जल फल आठों दरव अरघ कर प्रिति धरी है। गणधर इन्द्रनहु तै थुति पूरी न करी है // द्यानत, सेवक जानके (ही) जग” लेहु निकार / / सीम.९ ह्रीं विद्यमानविशतितीर्थकरेग्योऽनर्घ्य पदप्राप्तये अर्घ्य निर्व०।९