________________ नित्य नियम पूजा [ 121 ता दक्षिण क्षेत्र भरत सुनान है उत्तर ऐरावत महान / गिरि पांचतन दश क्षेत्र जोय, ताको वरनन सुनि भव्य लोय जो भरत तने वरनन विशाल, तेसो ही ऐरावत रसाल / इक क्षेत्र बीच विजयाद्ध एक ता उपर विद्याधर अनेक / / इक क्षेत्र तने षट खंड जान, तहां छहों काल बरतें समान / जो तीन कालमें भोगभूमि, दश जाति कल्पतरु रहें भूमि // जब चौथी काल लगै जु आय, तब कर्मभूमि व सु आय / जब तीर्थंकरको जन्म होय, सुरलेय जज गिरि मेरु सोय / बहु भक्ति करें सब देव आय, ताथेई थेई थेई की तानलाय हरि तांडव नृत्य करे अपार, सब जीवन मन आनंदकार / / इत्यादि भक्ति करिके सुरिन्द्र, जिनथान जाय युत देव वृन्द या विधि पांच कल्याण जोय, हरिभक्ति कर अतिहर्ष होय या काल विगै पुण्यवन्त जीव, नरजन्मभार शिव लहै अतीव सब त्रेसठ पुरुष प्रवीन जोय सब याही काल विगै जु होय जब पंचमकाल करे प्रवेश, मुनि धर्म तनो नहिं रहे लेश / विरले कोई दक्षिण देश माहि, जिनधर्मी जन बहुते जु नांहीं जब आवत है षष्टम जु काल दुःखमें दुःख प्रगटै अतिकराल तब मांसभक्षी नर सर्व होय, जहां धर्म नाम नहिं सुनै कोय याही विधिसे षट्काल जोय, दशक्षेत्रनमें इकसार होय // सब क्षेत्रनमें रचना समान जिनवाणी भाख्यो सो प्रमान / चौबीसी है इक क्षेत्र तीन दश क्षेत्र तीस जानो प्रवीन / /