________________ 120 / नित्य नियम पूजा ॐ ह्रीं पुष्करद्वीपकी पूर्व दिशा मंदिरमेरुकी उत्तरदिशा ऐरावत सम्बन्धि तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि० / . पद्धरि छन्द पश्चिम पुष्करगिरि विद्युतमाल, ता दक्षिण भरत बन्यो रसाल तामें चौबीसी हैं जु तीन वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन / / हीं पुष्कराद्ध द्वीपकी पश्चिमदिशा विद्युतमालीमेरुकी दक्षिण दिशा भरतक्षेत्रसंबंधी तीन चौबीसीके बहत्तरजिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि. याही गिरिके उत्तरजु और ऐरावत क्षेत्र तनी सुठोर / तामें चौबीसी हैं जु तीन वसु द्रव्य लेय पजों प्रवीन // ह्रीं पुष्करार्द्धद्वीपकी पश्चिम दिशा विद्युत्मालीमेरुकी उत्तरदिशा ऐरावतक्षेत्रसंबन्धी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेंद्रेभ्यो अर्घ नि। द्वीप अढाई के विष, पंचमेरु हित दाय / दक्षिण उत्तर तालुके, भरत ऐरावत भाय / भरत ऐरावत भाय, एक क्षेत्र के मांही, चौबीसी है तीन, तीन दशो ही के माहीं / दशो क्षेत्र के तीस सात सौ बीस जिनेश्वर, अर्थ लेय कर जोर जजौं 'रविमल' मन शुद्ध कर / ॐ ह्रीं पंचमेरु संबन्धी दश क्षेत्रके विष तीस चौबीसीके सातसौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / जयमाला दोहा-चौबीसी तीसो तनी पजा परम रसाल / मन-बच-तन सों शुद्धकर अब वरणो जयमाल / / जय द्वीप अढ़ाई में जु सार, गिरि पंचमेरु उन्नत आर / तागिरि पूरब पश्चिम जु और,शुभक्षेत्र विदेह बसै जुठोर / दक्षिण के माही, माहीं /