________________ 118 ] नित्य नियम पूजा मिष्ट उत्कृष्ट फल ल्यायो, अष्ट अरि दुष्ट नशवायो / श्रीजिन भेट करवायो, कार्य मनवांछित पायो ॥द्वीप ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो फलं नि / द्रव्य आठो जु लीना है. अर्घ करमें नवीना है / पूज” पाप छीना है 'भानमल' जोड कीना है // द्वीप० / / ॐ ह्रीं पांच भरत पांच ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धि तीस चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि० / प्रत्येक अर्घ आदि सुदर्शन मेरु तनी दक्षिण दिशा, भरत क्षेत्र सुखदाय सरस सुन्दर बसा / तिहँ चौवीसी तीन तने जिनरायजी, बहत्तरि जिन सर्वज्ञ नमो शिरनायजी 1 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुकी दक्षिण दिशा भरत क्षेत्र सम्बन्धिके . तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि / ताहि मेरु उत्तर ऐरावत सोहनो, आगत नागत वर्तमान मनमोहनो / तिहँ चौबीसी तीन तने जिनरायजी, बहत्तरि जिन सर्वज्ञ नमों शिरनायजी / 2 / ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुकी उत्तर दिशा ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धि तीन चौबीसोके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो अर्घ नि० / खण्ड धातुकी विजय मेरुके, दक्षिण दिशा बरत शुभ जान / तहां चौबीसी तिन विराजे, आगत नागत करु वर्तमान / तिनके चरणकमलको निशदिन अर्घ चढाय करु उरध्यान / इस संसार भ्रमणते तारो अहो जिनेश्वर करुणा वान.