________________ नित्य नियम पूजा [ 129 अष्ट कर्म मैं एकलो. यह दुष्ट महादुख देत हो / कबहूँ इतर निगोद में मकू पटकत करत अचेत हो / / म्हारी दीनतणी सुन विनती // 1 // प्रभु कबहुँ पटक्यो नरकमें जठे जीव महादुःख पाय हो। निष्ठर निरई नारकी, जठे करत परस्पर घात हो / म्हा.. प्रभु नरकतणा दुःख अब कहु जठे करत परस्पर घात हो। कोइयक बांध्यो सांभसो, पापी दे मुद्गरकी मार हो म्हा.. कोइयक काटे करीत सों पापी अंगतणी दोय फाड हो / प्रभु यह विधि दुःखभगत्या घणा फिरगतिपाई तिरयंच हो। हिरण बकरा बाछला, पशु दीन गरीब अनाथ हो। पकड कसाई जाल में पापी काट काट तन खाय हो म्हा. प्रभ मैं ऊट बलद मैंसों भयो, ज्यांपै लादियों भार अपार हो नहिं चाल्यो जब गिरपरयो, पापी दे सोटन की मार हो म्हा.. प्रभु कोइयक पुण्य संयोगसु मैं तो पायो स्वर्ग निवास हो। देवांगना संग रमि रह्यो, जठै भोगनिको परिताप हो। म्हा. प्रभुसंघ अप्सरा रमि रह्यो कर कर अति अनुराग हो / कबहुँक नन्दनवन-विौ, प्रभु कबहुँ बन गृह मांहि हो / म्हा.. प्रभु यहविधि काल गमायकं, फिर मालागई मुरझाय हो। देव तिथि सब घट गई फिर उपज्यो सोच अपार हो। सोच करता तन खिरपडयो,फिर उपज्यो गरममें जाय हो म्हा: