________________ 130 ] नित्य नियम पूजा प्रभुगर्भतणा दुख अब कहूँ, जठै सकुडाईकी ठोर हो / हलन चलन नहिं कर सक्यो जठे सघनकीच घनघोर हो।म्हा माता खाचे चरपरो, फिर लागै तन सन्ताप हो / प्रभु जो जननी तातो भखै, फिर उपजे तन संताप हो ।म्हा. औंधे मुख झुल्यो रह्यो, फेर निकसन कौन उपाय हो / कठिन 2 कर निसरयो जैसे निसरै जंत्रीमें तार हो !म्हा. प्रभु फिर निकसत ही धरत्यांपडयो,फिर लागीभूक अपारहो राय रोय विलख्यो घणो, दुख वेदनको नाहिं पार हो ।म्हा. प्रभु दुख मेटन समरथ धनी, यात लागू तिहारे पाय हो। सेवक अरज कर प्रभु ! मोकू भवोदधि पार उतार हो म्हा. दोहा-श्रीजीकी महिमा अगम है, कोई न पावै पार / मैं मति अल्प अज्ञान हूँ, कौन करै विस्तार / / ॐ ह्री आदिनाथाय जिनेन्द्राय महार्घ निर्व० स्वाहा / दोहा-विनती ऋषभ जिनेशकी जो पढसी मन लाय / स्वर्गामें संशय नहीं निश्चय शिवपुर जाय / इत्याशीर्वादः / / पंच बालयती तीर्थंकर पूजा दोहा-श्री जिन पंच अनंगजित, वासुपूज्य मलि नम / पारसनाथ सुवीर अति, पूजूचित धरि प्रेम / / ॐ ह्रीं पंचबालयति तीर्थंकरेभ्यो अत्रावत रावतर संवौषट आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं /